क्या यही है हमारी रक्तलिखीत आजादी? क्या हम कभी मिटा पाएंगे अंग्रेजों ने जो बोई थी बर्बादी? एक छत के नीचे हो गए है कई बंटवारे, ये आसमा रोज जमी को पुकारे, क्या ऐसी होती है आजादी प्यारे? खून के कतरों से लिखी हुई है ये कहानी सोने की चिड़िया का नाम खोकर खूब बड़ी दी है, हमने कुर्बानी आज भी कैद है जंजीरों में विचार, झांसी वाली रानी के क्या इस तरह होगे सपने सपने साकार? देश की बेटी की हिफाजत में जलाई जाती है मोमबत्तियां, भगतसिंह के आदर्शो की तो रोज उड़ती है चिथड़िया। इस माटी की सौगंध ले वीरों ने गवा दिए प्राण, वंदे मातरम के नारे लगाकर गूंजती रखी भारत की शान किसी की देशभक्ति कम न हुई चाहे हो गांधी, सुखदेव या सरदार, कैसे कहे उनसे ये देश तो हो गया है भ्रष्टाचार का शिकार। खुद की मातृभाषा को मानो कर दी हे पराई, क्या विकास का मतलब होता है अपनों की जुदाई? आज करे भारत मा से एक वादा चाहे हो हिन्दू, ईसाई या पीरजादा। हम अनेकता में एकता को देंगे मान, भले तेरे खातिर मौका ना मिले देने को जान, हम नहीं नीची होने देंगे तेरी शान! जय हिंद।। ©- प्राची शाह #Independence2021