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गजल ये जुस्तजू थककर उम्मीद हार कर बैठ गई वो खामोश

गजल
ये जुस्तजू थककर उम्मीद हार कर बैठ गई
वो खामोश ही रहा जुबां पुकार कर बैठ गई

बहुत कोशिशें कीं मनाने की पर वो न मानी
 अब हर ख्वाहिश मेरी दिल मारकर बैठ गई

अपने वादों से मुहं कर गया वो मुहाफ़िज़ मेरा
वो नाव भी किनारों पर मुझे डुबाकर बैठ गई

मैने उसे चांद के जैसा ही तो कहा था ऐ दिल
वो न जाने क्यों अपना मुंह उतारकर बैठ गई

 घर लौटा तो बड़ा सूकून मिला बरसों के बाद
मां प्यार से मेरा चेहरा जो पुचकारकर बैठ गई
मारुफ आलम पुकार कर बैठ गई/गजल
गजल
ये जुस्तजू थककर उम्मीद हार कर बैठ गई
वो खामोश ही रहा जुबां पुकार कर बैठ गई

बहुत कोशिशें कीं मनाने की पर वो न मानी
 अब हर ख्वाहिश मेरी दिल मारकर बैठ गई

अपने वादों से मुहं कर गया वो मुहाफ़िज़ मेरा
वो नाव भी किनारों पर मुझे डुबाकर बैठ गई

मैने उसे चांद के जैसा ही तो कहा था ऐ दिल
वो न जाने क्यों अपना मुंह उतारकर बैठ गई

 घर लौटा तो बड़ा सूकून मिला बरसों के बाद
मां प्यार से मेरा चेहरा जो पुचकारकर बैठ गई
मारुफ आलम पुकार कर बैठ गई/गजल
maroofhasan2421

Maroof alam

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