कभी तनहाई हमें नहीं सताती क्योंकि अकेले पन से ईश्क हो गया है ये एकांत माहौल बेचैनी नहीं सुकून देता है मानो ग्रीष्मऋतु में एक पथिक को बरगद के नीचे बैठ कर आराम मिला हो। थोड़े विश्राम के बाद राहगीर चल पड़ा मंजिल की ओर। जय श्री गोपाल जी ©Radhe Radhe राहगीर