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कभी खुद से भी कर लिया करो बात कितना वक्त गुजर गय

कभी खुद से भी

कर लिया करो बात

कितना वक्त गुजर गया

खुद से भी जो नहीं हुई मुलाक़ात


क्या ही अच्छा होता

जो चिंता मे होता महज रोटी भात

धन, बैंक की तिजोरी की चिंता

कर दिया, जिनके लिए एक दिन रात


कभी खुद से भी

कर लिया करो बात

कितना वक्त गुजर गया

खुद से भी जो नहीं हुई मुलाक़ात



न सियासत, न नफासत

न ऊंच नीच, न जात पात

मन कहले, मस्तिष्क कहले

सुन अपने भीतर की धात


कभी खुद से भी

कर लिया करो बात

कितना वक्त गुजर गया

खुद से भी जो नहीं हुई मुलाक़ात


खुद से दूर होकर,

मिट जायेंगे जज्बात

खुद को सुनना सीख

भूल जा जीवन की शह मात


कभी खुद से भी

कर लिया करो बात

कितना वक्त गुजर गया

खुद से भी जो नहीं हुई मुलाक़ात





©Kamlesh Kandpal
  #mulakaat