मन बहलाने को सोच लेती हूँ कि कभी तुम हँसते हुए आँसुओं में मुझे पा लेते होगे, उसी तरह जिस तरह से मैं चाँद को निहारते, उससे बातें करके यह समझ लेती हूँ कि तुम मेरी ख़ामोशी सुन रहे हो कहीं। (अनुशीर्षक में पढ़ें) ना.. अब मोहब्बत नहीं मुझे तुमसे.. बस ज़रा सी फ़िक्र रहती है। जब भी जी बोझिल होने लगता है, मैं ढूंढती हूँ कोई निशान, कोई चिन्ह, तुम्हारे होने का कोई एहसास खोजती हूँ। जब मिल जाती है ज़रा सी भी ख़बर तुम्हारी, तो तसल्ली मिल जाती है कि तुम कहीं साँसें ले रहे हो। नहीं जानती कि तुम ख़ुश हो या नहीं, पर दिलासा मिल जाता है यह जानकर कि तुम कहीं हो, इसी धरती पर, इसी आसमाँ तले..जी रहे हो अपनी ज़िंदगी, एक जुदा से रास्ते पर।