दिन ढलने के बाद , रात होती है । सपनो मे उनसे , मुलाक़ात होती है। दिन तो सूखे गुज़र जाते हैं , यादों मे, रातों मे , अश्क़ों की,बरसात होती है। हमारे सर क्यों हो ,इल्ज़ामे-रुसवाई , सब ज़माने की ख़ुराफात , होती है। हम तो बड़े , ख़िलाड़ी-ए-इश्क़ ,बने फिरते थे, हमे क्या पता था कि , यहाँ भी मात होती है। अपने हुश्न पर अच्छा नहीं , इतना ग़ुरूर ,"फिरारक़", याद रहे, मोहब्बत की भी , अपनी औक़ात होती है। नमस्कार लेखकों।😊 हमारे #rzcinemagraph पोस्ट पर Collab करें और अपने शब्दों से अपने विचार व्यक्त करें । इस पोस्ट को हाईलाईट और शेयर करना न भूलें!😍 हमारे पिन किये गए पोस्ट को ज़रूर पढ़ें🥳