अब तो जीवन भी पतझड़ है, जाने किसने सावन रोका ? मंद मंद मुस्काने वाली परियाॅ रूठ गई हमे सदा मिलाने वाली गलियां छूठ गई रोज सुबह छत पर तुम बाल सुखाती थी ना जाने क्यों वो दिल की कड़ियां टूट गई अब तो, कस्ती भी अपनी है, जाने किसने पानी रोका ? किताब गणित उसकी अब भी याद दिलाती है गुणा भाग कैसा है जीवन छाप बनाती है मुझसे पढ़ने जब वो मेरे घर पर आती थी वो बिस्तर की तकिया मुझे बहुत रुलाती है अब तो, विषय भी अपना है, जाने किसने पढ़ना रोका ? ©गंगवार रामवीर #NojotoQuote #ramveer