Mumbai Rains आज फिर हमने बादलों से, बरसने कि गुजारिश की है । बादलों ने भी तुझे मेरे साथ देखने कि ख़्वाहिश की है ।। तुम भूल गये हो मुझे या भूल जाने का इरादा है । गली मोहल्ले और चाँद तारों का भी अपना वादा है ।। बादलों को याद है अब भी वो मन्ज़र और जमाना । हल्की सी बारिश में मुझसे लिपट कर तेरा मुस्कुराना ।। वो खिड़कियाँ भी आजकल गमगीन रहती हैं । जो खुद ही खुल जाती थी हल्की सी घटाओं से ।। ईस उम्मीद में हर रोज़ खोल लेता हूँ मैं अलमीरा। कोई खत जो मिल जाये तो खुशबू हो फिजाओं में ।। चलो अब गिला-शिकवा हम दूर करते हैं । बादलों को जमकर बरसने को मजबूर करते हैं ।।