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*राष्ट्रपिता गाँधी* ================== न ऋषि, न प

*राष्ट्रपिता गाँधी*
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न ऋषि, न पंडित, न ही वो कोई महंत था।
वो अहिंसा का पुजारी तो, साबरमती का संत था।।

जिसके जीवन का एकमात्र लक्ष्य, भारत की परतंत्रता का अंत था।
सत्य के साथ प्रयोग करना, जिसके जीवन का मूलमंत्र था।।
वो अहिंसा का पुजारी तो, साबरमती का संत था।

ऐशोआराम से भरा जीवन, जिसे तनिक भी न पसंद था।
भाया न जिसको तनिक भी, राजनीति का लुभावना तंत्र था।।
भारत के दो टुकड़े करना, जिसकी नज़रों में ख़ुद का ही विध्वंस था।
भारी हृदय से अलग किया उसे, जो उसकी रूह का एक पाक अंश था।।
 
असहयोग की नीति अपनाकर, पाया जिसने जनता का भरपूर सहयोग था।
सत्याग्रह की राह पर चलना, जिसका अनूठा प्रयोग था।
सविनय अवज्ञा से अपनी माँगों को मनवाना, जिसके व्यक्तित्व का संयोग था।
गाँधी रूपी इस आँधी से ही आया भारत में, स्वतंत्रता का सुखद सुयोग था

ऐसे महात्मा को राष्ट्रपिता के रूप में पाना, हर भारतीय के पुण्य कर्मों का योग था।।

©Muskan Satyam 
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