नुक्कड़ पर कितनों के सब्र-ए-फ़िराक़ देखे हैं, मैंने भेड़ की खाल में खुले भेड़िये बेहिसाब देखे हैं!! जो ग़ुरूर में हैं उधार की रोशनाई लेकर यहाँ, मैंने शाम ढ़लने पर परवान चढ़ते कई चिराग़ देखे हैं!! मुहब्बत के आशियाने को देख जो ज़मीं दी थी, मैंने उन्हीं निगाहों में दफ़न होते नन्हें ख़्वाब देखे हैं!! अहसास टूट जाने से बेतरतीब होकर बहते हैं, मैंने पन्नों पर बिखरते हुये चुप से अल्फ़ाज़ देखे हैं!! #smriti_mukht_iiha🌠