Nojoto: Largest Storytelling Platform

अनु शीर्षक में पढ़ें होली का दिन था पूरे मोहल्ले

 अनु शीर्षक में पढ़ें होली का दिन था पूरे मोहल्ले में चहल-पहल थी । हां कोई खामोश था तो वह थी लाजवंती वह अपनी ही किसी दुनिया में खोई थी ।और वह दुनिया थी उसके अतीत की। सोचते सोचते  अतीत की गलियों में पूरे 20 वर्ष पीछे चली गई आज का ही तो दिन था हाँ इसी होली का।
जब सूरज आसमान के छोर पर था रात होने को आई थी लाजवंती अपने पति का इंतजार कर रही थी। धीरे-धीरे रात्रि ने भी अपना रंग दिखाया। वह बैठी रही देहरी पर इंतजार में। दूर कहीं  धुंधलके में उसकी पथराई आंखों ने देखा लड़खड़ाते हुए आते अपने पति को। ना जाने क्या हाल बनाया था उसने केश बिखरे हुए कपड़े कीचड़ से सने सारा तन बदबूदार हो रखा था।
उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी श्यामू की पर उसके इस हाल के पीछे भी एक कहानी है- बचपन से गरीबी में रहा था श्यामू अमीर बनने की चाहत थी मन में।
जमींदार का बेटा कुशाल जब नया बस्ता लेकर पाठशाला में दिखाता तो उसका मन भी पीड़ा से भर उठता था।
सोचता कि  मैं अमीर क्यों नहीं हूं दोष देने लगता  अपने माता-पिता को।
चौथी कक्षा में था श्यामू जब जानलेवा टीवी निगल गई उसके मां बाबा को। पढ़ाई भी छूट गई और बस एक ही साधन था पेट भरने का- मजदूरी
बस क्या था फिर मजदूरी कर बेचारा अपने जीवन की गाड़ी चलाने लगा। कोई नहीं था उसका इस दुनिया में सिवाय पड़ोस की उस चाची के जिसका भी अपने के नाम पर एक श्यामू ही था
 अनु शीर्षक में पढ़ें होली का दिन था पूरे मोहल्ले में चहल-पहल थी । हां कोई खामोश था तो वह थी लाजवंती वह अपनी ही किसी दुनिया में खोई थी ।और वह दुनिया थी उसके अतीत की। सोचते सोचते  अतीत की गलियों में पूरे 20 वर्ष पीछे चली गई आज का ही तो दिन था हाँ इसी होली का।
जब सूरज आसमान के छोर पर था रात होने को आई थी लाजवंती अपने पति का इंतजार कर रही थी। धीरे-धीरे रात्रि ने भी अपना रंग दिखाया। वह बैठी रही देहरी पर इंतजार में। दूर कहीं  धुंधलके में उसकी पथराई आंखों ने देखा लड़खड़ाते हुए आते अपने पति को। ना जाने क्या हाल बनाया था उसने केश बिखरे हुए कपड़े कीचड़ से सने सारा तन बदबूदार हो रखा था।
उम्र बहुत ज्यादा नहीं थी श्यामू की पर उसके इस हाल के पीछे भी एक कहानी है- बचपन से गरीबी में रहा था श्यामू अमीर बनने की चाहत थी मन में।
जमींदार का बेटा कुशाल जब नया बस्ता लेकर पाठशाला में दिखाता तो उसका मन भी पीड़ा से भर उठता था।
सोचता कि  मैं अमीर क्यों नहीं हूं दोष देने लगता  अपने माता-पिता को।
चौथी कक्षा में था श्यामू जब जानलेवा टीवी निगल गई उसके मां बाबा को। पढ़ाई भी छूट गई और बस एक ही साधन था पेट भरने का- मजदूरी
बस क्या था फिर मजदूरी कर बेचारा अपने जीवन की गाड़ी चलाने लगा। कोई नहीं था उसका इस दुनिया में सिवाय पड़ोस की उस चाची के जिसका भी अपने के नाम पर एक श्यामू ही था