पहली बारिश में बर्क़ गिरा के तो देख चाहत को अदा-ए-ख़ास बनाकर तो देख हिज़ाब चेहरें से थोड़ा हटा कर तो देख अपनी पलकें जरा ऊपर उठा कर तो देख नज़रों से नज़रें को मिला कर तो देख वो होठों पर मुस्कुराहट लाकर तो देख चिराग़ इश्क़ का दिल मे जलाकर तो देख ज़ानिब सबा-ए-मोहब्बत बहाकर तो देख रंग हया का चेहरें पर लगाकर तो देख सब छोड़कर आऊँगा बुलाकर तो देख एक बार दुआ में हाथ फैलाकर तो देख बस एक दफ़ा ख़ुदा को मनाकर तो देख मुमक़िन है तेरी आख़िरी मंज़िल मैं ही हूँ इल्म हो जाएगा तुझें दूर जाकर तो देख। Read in caption also पहली बारिश में बर्क़ गिरा के तो देख चाहत को अदा-ए-ख़ास बनाकर तो देख हिज़ाब चेहरें से थोड़ा हटा कर तो देख अपनी पलकें जरा ऊपर उठा कर तो देख नज़रों से नज़रें को मिला कर तो देख वो होठों पर मुस्कुराहट लाकर तो देख चिराग़ इश्क़ का दिल मे जलाकर तो देख