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बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी आज रात

बेरहम पूस के जाड़े में,
कल ही अँगीठी टूटी थी
आज रात की बारिश ने,
कम्बल भी गीला कर डाला

पूरी कविता कैप्शन में पढ़िए बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी
आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला

जैसे तैसे रातें अगहन की बीतीं
ठंड ने था मानों ठान लिया
कँपा दिया था धैर्य गरीब का
जाने कितनों की जान लिया
मधुमास की उम्मीदें पाल रखीं
बेरहम पूस के जाड़े में,
कल ही अँगीठी टूटी थी
आज रात की बारिश ने,
कम्बल भी गीला कर डाला

पूरी कविता कैप्शन में पढ़िए बेरहम पूस के जाड़े में, कल ही अँगीठी टूटी थी
आज रात की बारिश ने, कम्बल भी गीला कर डाला

जैसे तैसे रातें अगहन की बीतीं
ठंड ने था मानों ठान लिया
कँपा दिया था धैर्य गरीब का
जाने कितनों की जान लिया
मधुमास की उम्मीदें पाल रखीं