बड़ा ही वक़्त बीता है, मिरे ज़ख्मों को सिलने में, दवा अमृत सी लगती है, तिरे हाथों से पीने में। मिरी ये ख़ामुशी समझो, बहुत बिखरा हुआ हूँ मैं, तभी तो रूह को अपनी, किया है कैद सीने में। चलो अब लौट आओ तुम, जहाँ बैठे हो छुप कर के, फलक पर चाँद आ बैठा, नहीं देरी है मिलने में। नहीं हसरत है कोई कि, बदन तेरा मिले मुझको, सुकूँ मिलता है मुझको तो, तेरी बस रूह छूने में। गरीबी में पला मैं औ', गरीबी में ही मर बैठा, मेरी बीती जो उम्रें सब, दुआएं ही कमाने में। कुछ अश'आर हैं ज़िन्दगी से जुड़ें हुए। हर शेर कुछ अफ़साने कहता है। महसूस करिएगा और दिल को छुए तो इत्तेला करिएगा। ~ इकराश़