कोई दुखी किसी बात पर, बिन बात के कोई दुखी, जो हस रहा था कल यहाँ, हालात से अब है दुखी, कोई जन्म से परेशान है, कहीं मौत से है घर दुखी, फिर सुख कहां मिलता यहां, धनवान भी मिलता दुखी, जिसे मिल गया कुछ पा लिया कुछ देर में फिर वो दुखी कोई रो रहा है बेठकर, हँसता मिला, कल था दुखी, इस दुख चादर ओढ़ कर, है सो रहा मानव दुखी, तू भूल जा, तू दे रहा इस देह को सुख-दुख तुही, जो सुख दुख की भाषा जानते, राजी है दिल के हाल में उसकी रज़ा को मानते, वो आज भी कल भी सुखी ©Senty Poet #Sukh #Subeh khi #na #poem #horror