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रे राधे मन सुदामा के संकोच में दिन गुजर गए कान्हा

रे राधे मन सुदामा के संकोच में दिन गुजर गए
कान्हा भी सखा के स्वाभिमान में बंध के रह गए

दूरी की एक दीवार ख़डी थी जो दीदार में ढह गए
परत दर परत भाव दोनो के बिखरते चले गए

एक के आँख में गंगा दूजे के जमुना बहते चले गए 
सब मेल धुल दोनो के पावन हो गए

जन जनता जग दरबारी सब बिस्मित हो उठे 
अभिभूत हो सखा प्रेम का रसपान करते रह गए
🙏राकेश तिवारी 🙏

©Rakesh Tiwari #Krishna #poem #Bhakti #love #hindi_poetry #Hindi #hindi_quotes
रे राधे मन सुदामा के संकोच में दिन गुजर गए
कान्हा भी सखा के स्वाभिमान में बंध के रह गए

दूरी की एक दीवार ख़डी थी जो दीदार में ढह गए
परत दर परत भाव दोनो के बिखरते चले गए

एक के आँख में गंगा दूजे के जमुना बहते चले गए 
सब मेल धुल दोनो के पावन हो गए

जन जनता जग दरबारी सब बिस्मित हो उठे 
अभिभूत हो सखा प्रेम का रसपान करते रह गए
🙏राकेश तिवारी 🙏

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