सियासत ने ऐसा खेल रचा, के तिरंगा भी रंगों में बंट गया इसलाम को हरा, हिन्दू को भगवा दो रंगों में ऊंट गया बस रह गया बाकी रंग सफेद, मुर्दा लाशों को ढकने को आवाम पर सियासी नशा है चढ़ा मज़हबो में बंटने को ना जाने क्यों इक दूजे के खून से आवाम रंगा है जब हर किसी के दिल में बसता इक तिरंगा है देशभक्त इस ओर भी है, देशभक्त उस ओर भी है फिर क्यों राम अल्लाह के नाम पर, अखलाक चंदन माटी होते हैं क्यों जलते हैं शहर आए दिन, और तिरंगा जलता है सियासत की इस जंग में कोई सियासी क्यों नहीं मरता है कोई सियासी क्यों नहीं मरता है... (Read Caption too) रंग बिरंगा मुल्क था वो, जहां होड़ लगी थी रंगों में देशभक्ति यहां ज्यादा बहती है किसकी रगो में एक ओर खड़ा था हरा रंग, दूजी ओर जोर में भगवा था पर दोनों ही के हाथो में, झंडा वहीं तिरंगा था एक ओर नारे थे हिंदोस्ता के, दूजी ओर भारत माता थी पर दोनों ही की जुबां पर, मुल्क की आजादी थी फिर सियासी गलियारों से एक आवाज आई के हिंदू और मुस्लिम ना है भाई भाई