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सैनिक ताशकंद शिमला के मखाने में रो दिए उनकी क़ुरबा

सैनिक
ताशकंद शिमला के मखाने में
 रो दिए उनकी क़ुरबानी पर
 क्या ये थी हमारी जिम्मेदारी,
गया छोड़ अपना सब कुछ वो ,
देश की बहाली पर,
जाने कितने सपने देखे
उसके अपनों ने ।
खड़ा हिमालय पर वो
प्रणा निछावर को 
होता है जब सघर्ष
हत्यारो की बंदूको से
गिरा लहू खून का  एक ।
हिमालय की उन चटानो पे, 
तब कारगिल देखा है मैंने 
वीरो के हत्यारों से ,
बॉक्सा हमने एक लाख को 
 अपने उन औजारो से ।
नहीं खुल रही पिंग
की आँखे भी 62 के
 आभिमानो से ¡¡¡
भूल गया  पडोसी का अंजाम
65 से 99 का ।
मारा पुच-करा था हमने
71 में एक  को आजाद किया था हमने
अब भी जी रहा है,
 ताशकंद शिमला के मखानों से 
 भूल गया वो शायद मिन्टो 
के इस्लामाबाद के अफसानों को 
माफ किया था तब हमने 
का पुरुष  के अल्फाज़ो से। सैनिक
ताशकंद शिमला के मखाने में
 रो दिए उनकी क़ुरबानी पर
 क्या ये थी हमारी जिम्मेदारी,
गया छोड़ अपना सब कुछ वो ,
देश की बहाली पर,
जाने कितने सपने देखे
उसके अपनों ने ।
सैनिक
ताशकंद शिमला के मखाने में
 रो दिए उनकी क़ुरबानी पर
 क्या ये थी हमारी जिम्मेदारी,
गया छोड़ अपना सब कुछ वो ,
देश की बहाली पर,
जाने कितने सपने देखे
उसके अपनों ने ।
खड़ा हिमालय पर वो
प्रणा निछावर को 
होता है जब सघर्ष
हत्यारो की बंदूको से
गिरा लहू खून का  एक ।
हिमालय की उन चटानो पे, 
तब कारगिल देखा है मैंने 
वीरो के हत्यारों से ,
बॉक्सा हमने एक लाख को 
 अपने उन औजारो से ।
नहीं खुल रही पिंग
की आँखे भी 62 के
 आभिमानो से ¡¡¡
भूल गया  पडोसी का अंजाम
65 से 99 का ।
मारा पुच-करा था हमने
71 में एक  को आजाद किया था हमने
अब भी जी रहा है,
 ताशकंद शिमला के मखानों से 
 भूल गया वो शायद मिन्टो 
के इस्लामाबाद के अफसानों को 
माफ किया था तब हमने 
का पुरुष  के अल्फाज़ो से। सैनिक
ताशकंद शिमला के मखाने में
 रो दिए उनकी क़ुरबानी पर
 क्या ये थी हमारी जिम्मेदारी,
गया छोड़ अपना सब कुछ वो ,
देश की बहाली पर,
जाने कितने सपने देखे
उसके अपनों ने ।
khnazim8530

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