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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री ह

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11

।।श्री हरिः।।
3 - दाता की जय हो!

कुएँ पर रखा पत्थर पानी खींचने की रस्सी से बराबर रगड़ता रहता है और उस पर लकीरें  पड़ जाती हैं; इसी प्रकार कोई एक ही शब्द बराबर रटा करे तो उसकी जीभ पर या मस्तिष्क पर कोई विशेष लकीर पड़ती है या नहीं, यह बताना तो शरीरशास्त्र के विद्वान का काम है। मैं तो इतना जानता हूँ कि जहाँ वह नित्य बैठा करता था, वहाँ का पत्थर कुछ चिकना हो गया है। श्रीबांकेबिहारीजी के मन्दिर के बाहर कोने वाली सँकरी सीढी के ऊपर वह बैठता था और एक ही रट थी उसकी - 'दाता की जय हो!'

मैं अनेक बार दर्शन खुलने से पर्याप्त पूर्व पहुँचा हूँ। वैसे भी श्रीबांकेबिहारीजी बड़े मनमौजी ठाकुर हैं। कभी उठेंगे तो साढ़े नौ बजे ही उठ जायेंगे और नहीं तो बारह बजे तक भी दर्शनार्थी गर्भगृह के फाटक की ओर टकटकी लगाये रहेंगे। अनेक बार मुझे एक घंटे से भी अधिक दर्शन की प्रतीक्षा में बैठना पड़ता है। इतने पर भी कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने उसे उस सीढी के ऊपरी भाग पर अनुपस्थित पाया हो। वह कब वहां आकर बैठता था और कब वहां से उठता था, यह मुझे पता नहीं। इतना महत्वपूर्ण वह नहीं था कि कोई भी उसके आने या चले जाने पर ध्यान दे। मुझे आशा नहीं कि सीढी के पास या सामने की दिशा में जो तनिक हटकर दूकान है, उसके दूकानदार भी उस भिखारी के वहाँ बैठने तथा वहाँ से जाने का समय बता सकें।
anilsiwach0057

Anil Siwach

New Creator

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 11 ।।श्री हरिः।। 3 - दाता की जय हो! कुएँ पर रखा पत्थर पानी खींचने की रस्सी से बराबर रगड़ता रहता है और उस पर लकीरें पड़ जाती हैं; इसी प्रकार कोई एक ही शब्द बराबर रटा करे तो उसकी जीभ पर या मस्तिष्क पर कोई विशेष लकीर पड़ती है या नहीं, यह बताना तो शरीरशास्त्र के विद्वान का काम है। मैं तो इतना जानता हूँ कि जहाँ वह नित्य बैठा करता था, वहाँ का पत्थर कुछ चिकना हो गया है। श्रीबांकेबिहारीजी के मन्दिर के बाहर कोने वाली सँकरी सीढी के ऊपर वह बैठता था और एक ही रट थी उसकी - 'दाता की जय हो!' मैं अनेक बार दर्शन खुलने से पर्याप्त पूर्व पहुँचा हूँ। वैसे भी श्रीबांकेबिहारीजी बड़े मनमौजी ठाकुर हैं। कभी उठेंगे तो साढ़े नौ बजे ही उठ जायेंगे और नहीं तो बारह बजे तक भी दर्शनार्थी गर्भगृह के फाटक की ओर टकटकी लगाये रहेंगे। अनेक बार मुझे एक घंटे से भी अधिक दर्शन की प्रतीक्षा में बैठना पड़ता है। इतने पर भी कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने उसे उस सीढी के ऊपरी भाग पर अनुपस्थित पाया हो। वह कब वहां आकर बैठता था और कब वहां से उठता था, यह मुझे पता नहीं। इतना महत्वपूर्ण वह नहीं था कि कोई भी उसके आने या चले जाने पर ध्यान दे। मुझे आशा नहीं कि सीढी के पास या सामने की दिशा में जो तनिक हटकर दूकान है, उसके दूकानदार भी उस भिखारी के वहाँ बैठने तथा वहाँ से जाने का समय बता सकें।

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