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खूदा ने सच और झूठ के अलावा भी बहोत कुछ बनाया है व

खूदा ने सच और झूठ  के अलावा भी बहोत कुछ बनाया है वो इसलिए क्योकि इन्सान शब्दो के साथ आँख-मिचोली  करने मे माहिर हो गया है। इन्सान ये भूल जाता है कि चाहे वो झूठ बोलकर सच छूपा ले पर खुदसे तो कभी सच छूपा नही सकता, इसलीये खूदा ने शब्दो की भूलभुलैया के परे कुछ और भी बनाया है "इन्सान का स्वभाव, हाव-भाव और उसकी आँखे".जो बिन कहे सब बयाँ कर देती है और छोड़ देती है तो बस वीरानीयत, जो उस इन्सान को निरन्तर अन्दर से खोखला करती रहती है।
खूदा ने सच और झूठ  के अलावा भी बहोत कुछ बनाया है वो इसलिए क्योकि इन्सान शब्दो के साथ आँख-मिचोली  करने मे माहिर हो गया है। इन्सान ये भूल जाता है कि चाहे वो झूठ बोलकर सच छूपा ले पर खुदसे तो कभी सच छूपा नही सकता, इसलीये खूदा ने शब्दो की भूलभुलैया के परे कुछ और भी बनाया है "इन्सान का स्वभाव, हाव-भाव और उसकी आँखे".जो बिन कहे सब बयाँ कर देती है और छोड़ देती है तो बस वीरानीयत, जो उस इन्सान को निरन्तर अन्दर से खोखला करती रहती है।