उसका घर सामने शहर में है एक लड़की मेरी नजर में है हो गई इक्कीस पर लगती सोलह की थोड़ी सी छोटी मुझसे उमर में है मैंने पूछा कहां छुपायी मेरी तस्वीर वो बोले देखिये, मेरे जिगर में है वो नहीं पाते हैं मंजिल अपनी जो बन्द अपने ही घर में है जिंदगी तेरी तलाश में निकला हूं या यूं कहूं जिंदगी सफर में है.. कवि रोशनलाल "हंस" Akashi Parmar , , ,