माँ! पिछली दफा जो तुम आई थी ना मर्तबान में निमकी डिब्बे में लड्डू और पिटारी में लाई चूरा के साथ वह जो थोड़ा थोड़ा गाँव भर लाई थी ना दोस्त, यार संग कुछ कुछ बंटते स्वाद गाँव का चखते चखते इस परदेश में अपनेपन का एक ज़ख़ीरा बन आया है इस परदेश के आसमान में चाँद वहाँ का खिल आया है। पगडंडी, पोखर, दलान माँ याद गाँव बेहद आता है बरसा में सौंधी खुशबू को अक्सर ही मन ललचाता है लेकिन तुम जो सिखा गई थी पिछली बारी बता गई थी लिट्टी चोखा, तीखी चटनी बना लोकधुन सुन लेते हैं ऐसे ही परदेश में रहकर देश को कुछ कुछ जी लेते हैं। ✍ रागिनी प्रीत ©Ragini Preet #परदेश #Hindi #writer #Emotional #Feeling #thought #poem #Poet #hindi_poetry #Ocean