मैं एक शब्द हूँ, अपने आप में एक अर्थ हूँ... समझे तो समर्थ हूँ, ना समझे तो अनर्थ हूँ... कभी उपयुक्त तो कभी अनुपयुक्त हूँ... पर हर बंधन से मुक्त हूँ... कभी सूक्त हूँ कभी भुक्त हूँ... पर महानता से युक्त हूँ... कभी गर्जना का पात्र हूँ... कभी भक्ति का सुपात्र हूँ... चुप हूँ तो कलंक हूँ... बोल दूँ तो निशंक हूँ.... रिश्तों में मिठास हूँ तो दुश्मनों में पाश हूँ... मैं लाश हूँ... मैं हताश हूँ... कर रहा विनाश हूँ... गिर पड़ूँ तो हार हूँ... उठ चलूँ तो इतिहास हूँ... कभी दोष देता काश हूँ... कभी धीरज बंधाता आस हूँ... प्रभु का एक दास हूँ... मांगी हुई अरदास हूँ... मान ले तो विश्वास हूँ... तेरी ही श्वास हूँ.... 🙏🏻🙏🏻"अभिषेक ठाकुर" #samay #kavita