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तमाम ख्वाहिशों के नगर से होकर हम भी गुजरे है, अब ट

तमाम ख्वाहिशों के नगर से होकर हम भी गुजरे है,
अब टूटे सपनो के नगर में अपना बसेरा है, मुबारक हो खुशियां तुमको हमारा क्या है साहब हम तो बेघर हैं कबके तुम्हारे ही दिए जख्मों के शहर में ठहरे हैं।

©Avika's world
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