नफरत की बूंदाबांदी फिर से बढ़ने लगी हैं धीरे-धीरे हम भी मुहब्बत की बरसात हमेशा करेगें धीरे-धीरे ये सियासत वाले आपस में ऐसे ही आग लगाते रहेंगे मगर कसम खाई हैं सब को साथ लेकर चलेंगे धीरे-धीरे उसकी फितरत हैं जो लोगों से कहता हैं सब जानता हूँ मगर ये उसका वहम हैं जो सदियों से बढ़ रहा हैं धीरे-धीरे गुलामी की ज़जीरो में वह सब को जकड़ना चाहता हैं लोगों को उसकी फितरत और मक्कारी बताऊंगा धीरे-धीरे जो हमारी एकता को तोड़ने की कोशिश में लगें रहते हैं हम भी मुल्क की अमनो शान्ति की दुआ करेगें धीरे-धीरे नफरत की बूंदाबांदी फिर से बढ़ने लगी हैं धीरे-धीरे हम भी मुहब्बत की बरसात हमेशा करेगें धीरे-धीरे ये सियासत वाले आपस में ऐसे ही आग लगाते रहेंगे मगर कसम खाई हैं सब को साथ लेकर चलेंगे धीरे-धीरे उसकी फितरत हैं जो लोगों से कहता हैं सब जानता हूँ मगर ये उसका वहम हैं जो सदियों से बढ़ रहा हैं धीरे-धीरे