जाने कब ये धूल हटेगी ! होंगे साफ़ ये मन के दर्पण। मैं ! कान्हा की बंसी की धुन, तुम हो मीरा सा समर्पण।। हमने--तुमने अपनी--अपनी, दुनिया एक बसा ली है। मेरे हिस्से दर्द का दरिया, 'अनुपम' तुम गीतों की धड़कन।। #यादें ! जो रुला दें ।