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सीने से लगाकर जो अपने, बच्चे को दूध पिलाती है। मग

सीने से लगाकर जो अपने, 
बच्चे को दूध पिलाती है।
मगर ढलका जो आँचल उसका,
वो चरित्रहीन कहलाती है।
आवाज़ उठाए तो दुनिया, 
मर्यादा का पाठ पढाती है।
इस तरह वो लाज शर्म के, 
चक्की में पिस जाती है।
अपने कुकर्मों के ख़ातिर, 
काया को उसकी रौंदते हो।
नापाक नज़रों से तुम उसके, 
आँचल में दाग़ लगाते हो।
फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो।

©Ritika Vijay Shrivastava #devimaa #navratri #Durgapuja #DeviDurga  hindi poetry Hinduism poetry in hindi poetry on love poetry
सीने से लगाकर जो अपने, 
बच्चे को दूध पिलाती है।
मगर ढलका जो आँचल उसका,
वो चरित्रहीन कहलाती है।
आवाज़ उठाए तो दुनिया, 
मर्यादा का पाठ पढाती है।
इस तरह वो लाज शर्म के, 
चक्की में पिस जाती है।
अपने कुकर्मों के ख़ातिर, 
काया को उसकी रौंदते हो।
नापाक नज़रों से तुम उसके, 
आँचल में दाग़ लगाते हो।
फिर क्यों? तुम नवरात्र मनाते हो।

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