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पर कुछ चीजें भी है जो यथार्थ है मेरी उन महानुभाव स

पर कुछ चीजें भी है जो यथार्थ है मेरी उन महानुभाव से जब भी ऐसे विषयवस्तु में द्वन्द हुई है तो महोदय अल्कोहल के सान्निध्य में ही पाए गए हैं,संभवतः इसी विशेषता के कारण हमारे माननीयों ने विद्यालय खोलने के आदेश को न मानकर मदिरालय खोलना ही आवश्यक समझा।मेरी कहानी पसेरी भर ज्ञान प्रथम भाग इसी अतिविशिष्टता के गुण से प्रेरित होकर ही संभवतः मैंने लिखी थी जहाँ सुदूर क्षेत्र में बसे गाँव शान्तिपुर के झक्कन कलाबाज की वो चौपाल जिसमें  बिशू,बड़बोले ललकार,ऐंठन बाबा,कूटन सरताज,जूझारू खड़ेश्वर महाराज की गाँजे की अनुभूति पश्चात ऐसे ही विचार प्रस्फुटित होते थे जैसे इन महानुभाव में उस दिन प्रस्फुटित हुए थे ,प्रश्न ऐसे कि दिल चीर कर निकल जाए,जैसा पसेरी भर ज्ञान का अपना पात्र विशू  क्या  साहित्यिक वर्णन किया था उस दिन ओहो....हो...बलखाती,बिल्कुल सजी हुई सी नयी नवेली सादे लिबाज़ में हमारे पास आ ही रही थी कि तभी किसी ने पीछे से ठोकर मारी और वो जमीन पर भुरभुरा के गिर गयी,अब बताइए क्या ऐसा साहित्यिक वर्णन कोई साहित्यकार कर भी सकता है क्या भला!!!!

©Bharat Bhushan pathak शिक्षक भाग-२

#Teacher
पर कुछ चीजें भी है जो यथार्थ है मेरी उन महानुभाव से जब भी ऐसे विषयवस्तु में द्वन्द हुई है तो महोदय अल्कोहल के सान्निध्य में ही पाए गए हैं,संभवतः इसी विशेषता के कारण हमारे माननीयों ने विद्यालय खोलने के आदेश को न मानकर मदिरालय खोलना ही आवश्यक समझा।मेरी कहानी पसेरी भर ज्ञान प्रथम भाग इसी अतिविशिष्टता के गुण से प्रेरित होकर ही संभवतः मैंने लिखी थी जहाँ सुदूर क्षेत्र में बसे गाँव शान्तिपुर के झक्कन कलाबाज की वो चौपाल जिसमें  बिशू,बड़बोले ललकार,ऐंठन बाबा,कूटन सरताज,जूझारू खड़ेश्वर महाराज की गाँजे की अनुभूति पश्चात ऐसे ही विचार प्रस्फुटित होते थे जैसे इन महानुभाव में उस दिन प्रस्फुटित हुए थे ,प्रश्न ऐसे कि दिल चीर कर निकल जाए,जैसा पसेरी भर ज्ञान का अपना पात्र विशू  क्या  साहित्यिक वर्णन किया था उस दिन ओहो....हो...बलखाती,बिल्कुल सजी हुई सी नयी नवेली सादे लिबाज़ में हमारे पास आ ही रही थी कि तभी किसी ने पीछे से ठोकर मारी और वो जमीन पर भुरभुरा के गिर गयी,अब बताइए क्या ऐसा साहित्यिक वर्णन कोई साहित्यकार कर भी सकता है क्या भला!!!!

©Bharat Bhushan pathak शिक्षक भाग-२

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