Nojoto: Largest Storytelling Platform

मेरी माँ कह रही थी कल उलाहना दे रहीं थी कल मैं क्य

मेरी माँ कह रही थी कल
उलाहना दे रहीं थी कल
मैं क्यों खाता ना पीता हूं
मैं क्यों बैचैन जीता   हूं
मुझे परवाह नही तन की
मैं सुनता क्यों नही मन की
समय से  जो मुकरता हैं
समय की रूह से डरता हैं
ये जादू कुछ नही काला
ये मन का भ्रम हैं पाला
तिजारत सृष्टि की है ये
कल्पना दृष्टि की हैं ये
अवनति होती रहती है
नियति ये ही कहती हैं
तुम्हें खुशियां भुलाना है
गर ये संसार पाना हैं
समय के साथ जाना हैं
यही जीवन का पाना है 
कुँवर अरुण

©Kunwar arun ¥ #poem 
#colours
मेरी माँ कह रही थी कल
उलाहना दे रहीं थी कल
मैं क्यों खाता ना पीता हूं
मैं क्यों बैचैन जीता   हूं
मुझे परवाह नही तन की
मैं सुनता क्यों नही मन की
समय से  जो मुकरता हैं
समय की रूह से डरता हैं
ये जादू कुछ नही काला
ये मन का भ्रम हैं पाला
तिजारत सृष्टि की है ये
कल्पना दृष्टि की हैं ये
अवनति होती रहती है
नियति ये ही कहती हैं
तुम्हें खुशियां भुलाना है
गर ये संसार पाना हैं
समय के साथ जाना हैं
यही जीवन का पाना है 
कुँवर अरुण

©Kunwar arun ¥ #poem 
#colours