मेरी माँ कह रही थी कल उलाहना दे रहीं थी कल मैं क्यों खाता ना पीता हूं मैं क्यों बैचैन जीता हूं मुझे परवाह नही तन की मैं सुनता क्यों नही मन की समय से जो मुकरता हैं समय की रूह से डरता हैं ये जादू कुछ नही काला ये मन का भ्रम हैं पाला तिजारत सृष्टि की है ये कल्पना दृष्टि की हैं ये अवनति होती रहती है नियति ये ही कहती हैं तुम्हें खुशियां भुलाना है गर ये संसार पाना हैं समय के साथ जाना हैं यही जीवन का पाना है कुँवर अरुण ©Kunwar arun ¥ #poem #colours