करेले पुकार, गूंजे रोज चीत्कार हमनी के दुख से बचाव मोरे लोगवा। बंग जमिनिया पे, जिंनगी जहर भइल, कबले पीड़ा के सीही बंद रखी होठवा। जलल मंदिरवा, टूटल घर-दुवारवा नयन से बहे रोज खून के ई धारवा धरम के बेटवा बंधुवा त बनी गइल, कब सुध लीही, अब दुनिया जहाँनवा छिन गइलन सपना, टूट गइलन आस सारा, खूनवा से रंगल जाता मोर इतिहासवा कबले असही चुप रहब,कबले ई दुख सहब आंखी खोल विश्व बंधु,देख चित्कारवा हमनि का रोवतानी, तोहरो जगावती बानी इंसानियत के दियरी झूठहि जरावत बानी एकता के अलख कैसे मुर्दाघाटे लेके बढ़ी पल पल बेटी सब के आगी में जरावत बानी करे ले पुकार, गूंजे रोज चीत्कार, धरम के दीप जलाव मोरे लोगवा। बंग जमिनिया पे, हरियाली फेर लेके आव दुख के ई बदरी हटाव मोरे लोगवा। राजीव ©samandar Speaks Hinduism