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किल्लत रोटी की तब जानी जब रोटी ने नाता तोड़ा। कीमत

किल्लत रोटी की तब जानी
जब रोटी ने नाता तोड़ा।
कीमत खुद की तब पहचानी
जब अपनो ने हाथ ये छोड़ा।।

भटक रहे थे खाली पेट तो
अश्रुनीर से प्यास बुझाई।
थाम रहे थे जब खुद को तो
हर दहलीज़ से ठोकर पाई।।

गगन में उड़ना चाहा जब भी
जंज़ीरों से लिपट गए।
छाव की चाह में जब भी बैठें
वृक्ष भी बहुधा सिमट गए।।

दर्द भी पहले आंशू बनकर
हर क्षण टपका करते थे।
पूरे जग से होकर अक्सर 
मुझपर अटका करते थे।।

विवश का आंगन छोड़ के इक दिन
पृथक सा बनना ठान लिया।
झूठे गणित के विश्व मे मैंने 
खुद को शून्य सा मान लिया।।

ना जाने क्यों अब हर कोई
मेरा साथ यूँ चाहते है।
जग के बड़े अंक भी देखो 
शून्य से जुड़ना चाहते है।।

जान गया हूँ जग से इतना
रक्त तो यहां बहाना है।
यहाँ से पाई हर रोटी का
मोल ये सबको चुकाना हैं।। रोटी की कीमत
किल्लत रोटी की तब जानी
जब रोटी ने नाता तोड़ा।
कीमत खुद की तब पहचानी
जब अपनो ने हाथ ये छोड़ा।।

भटक रहे थे खाली पेट तो
अश्रुनीर से प्यास बुझाई।
थाम रहे थे जब खुद को तो
हर दहलीज़ से ठोकर पाई।।

गगन में उड़ना चाहा जब भी
जंज़ीरों से लिपट गए।
छाव की चाह में जब भी बैठें
वृक्ष भी बहुधा सिमट गए।।

दर्द भी पहले आंशू बनकर
हर क्षण टपका करते थे।
पूरे जग से होकर अक्सर 
मुझपर अटका करते थे।।

विवश का आंगन छोड़ के इक दिन
पृथक सा बनना ठान लिया।
झूठे गणित के विश्व मे मैंने 
खुद को शून्य सा मान लिया।।

ना जाने क्यों अब हर कोई
मेरा साथ यूँ चाहते है।
जग के बड़े अंक भी देखो 
शून्य से जुड़ना चाहते है।।

जान गया हूँ जग से इतना
रक्त तो यहां बहाना है।
यहाँ से पाई हर रोटी का
मोल ये सबको चुकाना हैं।। रोटी की कीमत

रोटी की कीमत #कविता