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किसान हक़ का मारा नहीं, उसने इस धरा से वसूल करके,

किसान हक़ का मारा नहीं, 
उसने इस धरा से वसूल करके, 
दुनिया को खिलाया है !
मैं दावे से कहता हूँ यही सच है, 
किसी ने जानकर फायदा 
फिर लहू में अफीम मिलाया है !!

अच्छे दिनों का थम,  सिलसिला रहा है, 
भक्त भक्ति में अब तक तिलमिला रहा है !
ये तो बस एक छोटा सा राज खुलना हुआ, 
यहाँ हर बदलाव इनका जुमला रहा है !

क्या ये तार तार करना खुद को अच्छा रहेगा, 
अपने ही कपड़े उतारना, कहाँ तक चलता रहेगा !
सड़क पर उतरे हो तो हक़ माँगो जमीं माँगो, 
ये द्वंद्व दंगा कब तलक अंदर हमारे पलता रहेगा !!!

बाजार बन गए हम, कठपुतली सा संसद हो गया है, 
सविंधान टोने टोटके जैसा, अपना रस मूल खो गया है !
मुझे दोष खुद मैं ही ज्यादा नजर आने लगे हैं, 
यहाँ कोड़ियो के दाम बिकता मान, इंसान सो गया है !!

साधना की कथाओं में अब इस सदी की व्यथा होगी, 
मैं सोचता हूँ अब क्या हमारी कला क्या प्रथा होगी !!
क्या हमारी आने वाली नस्लों को समझाया जायेगा, 
केसी वसीहतें होंगी हमारी फिर क्या सभ्यता होगी !!

यहाँ कुछ लोगों की जरुरत खत्म होना नहीं चाहती, 
वो भूख आँसू से मिटा सकती है, रोना नहीं चाहती !
आजादी के नाम का नशा बरसो रहा हमपर यहाँ, 
कागजों में कैद होकर वो आजादी फिर खोना नहीं चाहती!!

हक़ बाँटो बराबर, स्वाभिमान की सत्यता मानो, 
ना लड़ो बीहड़ में, निर्माण की प्रत्यक्छता माँगो !
खुद से पूछो तुम, कैसे माँग सकते हो दो रोटी 
जरुरी है अपना स्वाभिमान तुम सभ्यता माँगो !!


मेरे किसानों हाँ तुम अपना हक़ माँगो, 
जमी क्या,  तुम चाहो फलक माँगो !!
इस आग से तुम्हारे अपने ही जलते हैं, 
आँसू और बारिशों का तुम फर्क जानो !


मेरे किसानों हाँ तुम अपना हक़ माँगो !!


#अभीदेव_आभाष

©Abhidev - Arvind Semwal किसान हक़ का मारा नहीं, 
उसने इस धरा से वसूल करके, 
दुनिया को खिलाया है !
मैं दावे से कहता हूँ यही सच है, 
किसी ने जानकर फायदा 
फिर लहू में अफीम मिलाया है !!

अच्छे दिनों का थम,  सिलसिला रहा है,
किसान हक़ का मारा नहीं, 
उसने इस धरा से वसूल करके, 
दुनिया को खिलाया है !
मैं दावे से कहता हूँ यही सच है, 
किसी ने जानकर फायदा 
फिर लहू में अफीम मिलाया है !!

अच्छे दिनों का थम,  सिलसिला रहा है, 
भक्त भक्ति में अब तक तिलमिला रहा है !
ये तो बस एक छोटा सा राज खुलना हुआ, 
यहाँ हर बदलाव इनका जुमला रहा है !

क्या ये तार तार करना खुद को अच्छा रहेगा, 
अपने ही कपड़े उतारना, कहाँ तक चलता रहेगा !
सड़क पर उतरे हो तो हक़ माँगो जमीं माँगो, 
ये द्वंद्व दंगा कब तलक अंदर हमारे पलता रहेगा !!!

बाजार बन गए हम, कठपुतली सा संसद हो गया है, 
सविंधान टोने टोटके जैसा, अपना रस मूल खो गया है !
मुझे दोष खुद मैं ही ज्यादा नजर आने लगे हैं, 
यहाँ कोड़ियो के दाम बिकता मान, इंसान सो गया है !!

साधना की कथाओं में अब इस सदी की व्यथा होगी, 
मैं सोचता हूँ अब क्या हमारी कला क्या प्रथा होगी !!
क्या हमारी आने वाली नस्लों को समझाया जायेगा, 
केसी वसीहतें होंगी हमारी फिर क्या सभ्यता होगी !!

यहाँ कुछ लोगों की जरुरत खत्म होना नहीं चाहती, 
वो भूख आँसू से मिटा सकती है, रोना नहीं चाहती !
आजादी के नाम का नशा बरसो रहा हमपर यहाँ, 
कागजों में कैद होकर वो आजादी फिर खोना नहीं चाहती!!

हक़ बाँटो बराबर, स्वाभिमान की सत्यता मानो, 
ना लड़ो बीहड़ में, निर्माण की प्रत्यक्छता माँगो !
खुद से पूछो तुम, कैसे माँग सकते हो दो रोटी 
जरुरी है अपना स्वाभिमान तुम सभ्यता माँगो !!


मेरे किसानों हाँ तुम अपना हक़ माँगो, 
जमी क्या,  तुम चाहो फलक माँगो !!
इस आग से तुम्हारे अपने ही जलते हैं, 
आँसू और बारिशों का तुम फर्क जानो !


मेरे किसानों हाँ तुम अपना हक़ माँगो !!


#अभीदेव_आभाष

©Abhidev - Arvind Semwal किसान हक़ का मारा नहीं, 
उसने इस धरा से वसूल करके, 
दुनिया को खिलाया है !
मैं दावे से कहता हूँ यही सच है, 
किसी ने जानकर फायदा 
फिर लहू में अफीम मिलाया है !!

अच्छे दिनों का थम,  सिलसिला रहा है,

किसान हक़ का मारा नहीं, उसने इस धरा से वसूल करके, दुनिया को खिलाया है ! मैं दावे से कहता हूँ यही सच है, किसी ने जानकर फायदा फिर लहू में अफीम मिलाया है !! अच्छे दिनों का थम, सिलसिला रहा है, #Life_experience #EveningBlush #अभीदेव_आभाष