सोचा था, समाज बदल रहा है, लोगों की सोच भी बदल रही होगी... अब कहीं कोई बेटी, सड़क किनारे फेंकी हुई नहीं मिलेगी... मगर हमें क्या मालूम था कि इतिहास खुद को दोहराएगा, इस पर कर्ण नहीं, गंगा को किनारे पर रोता बिलखता पाया जाएगा, अरे! उस मासूम का कसूर ही क्या था? क्या लड़की होना, सिर्फ़ यही उसका गुनाह था? कभी बोरी में तो कभी बक्से में बंद कर नदी में बहाया जाए, क्या इसलिए उसने जन्म पाया था? काश! इन्हें भी अधिरत जैसा पिता और राधा जैसी माता मिले, जो समाज के हर बंधन तोड़, अपने सीने से लगा सके...!!! #182thquote