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भागती जिंदगी को थोड़ा आराम जरूरी है, एकाकी में त्य

भागती जिंदगी को थोड़ा आराम जरूरी है,
एकाकी में त्योहार भी अब रंग गए है।
चलो कुछ खुशियां खरीद लेते है पैसों से,
सुना है मोहल्ले में बाज़ार सज गए है।
सुना सा है ये त्योहारों की किलकारियां,
अकेले घरों में रिश्तों के मायने सिमट गए है।
चलो कुछ भावों को खरीद ले कागज़ों से,
की मोहल्ले में आज बाजार सज गए है।
आधुनिकता के बारिश में बचपन डूबा हुआ है,
बच्चों के खिलखिलाहट शांत हो गए है।
कुछ शैतानियां खरीद लो बिकते समाजों से,
की ख्वाहिशें बेचने को बाज़ार सज गए है।
जो जितनी बोली लगा सकता है लगा लो,
यहां हर किसी के मोल भाव हो गए है।
चलो कुछ सुकून खरीद लेते है विचारों से,
बिकती समाजों को बाज़ार सज गए है। दिवाली है आने वाली
ऐसे में बाज़ार सज चुके हैं।
ख़रीदारी ज़ोरों पर है।
इस दिवाली क्या ख़रीदा जा रहा है।

लिखें YQ DIDI के साथ।

#बाज़ार
भागती जिंदगी को थोड़ा आराम जरूरी है,
एकाकी में त्योहार भी अब रंग गए है।
चलो कुछ खुशियां खरीद लेते है पैसों से,
सुना है मोहल्ले में बाज़ार सज गए है।
सुना सा है ये त्योहारों की किलकारियां,
अकेले घरों में रिश्तों के मायने सिमट गए है।
चलो कुछ भावों को खरीद ले कागज़ों से,
की मोहल्ले में आज बाजार सज गए है।
आधुनिकता के बारिश में बचपन डूबा हुआ है,
बच्चों के खिलखिलाहट शांत हो गए है।
कुछ शैतानियां खरीद लो बिकते समाजों से,
की ख्वाहिशें बेचने को बाज़ार सज गए है।
जो जितनी बोली लगा सकता है लगा लो,
यहां हर किसी के मोल भाव हो गए है।
चलो कुछ सुकून खरीद लेते है विचारों से,
बिकती समाजों को बाज़ार सज गए है। दिवाली है आने वाली
ऐसे में बाज़ार सज चुके हैं।
ख़रीदारी ज़ोरों पर है।
इस दिवाली क्या ख़रीदा जा रहा है।

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