मोहब्बत में मग़रूर है वो, कुछ ना कुछ ज़रूर है वो. दीवान मे हो रहा फ़ैसला, सामने होके भी दूर है वो. दिल से यूं निकाल फेका, किस नशें मे चूर है वो. तस्स्वुर मे तो इश्क़ जैसा, हकीकत में तो कूर है वो. ऐसे मुझे मिटाने के बाद, कहता की मजबूर है वो. मैं उसके सामने ख़ामोश, बजता जश्न का तूर है वो. मोहब्बत में मग़रूर है वो।। कुछ ना कुछ ज़रूर है वो।। अर्थ :- मगरूर - घंमडी दीवान - न्यायालय