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बाहर निकल कर मैं आया वो गुरूर में खुद के न निकल स

बाहर निकल कर मैं आया 
वो गुरूर में खुद के न निकल सके 
मैं मन से मिला वो मन से न मिल सके 

दंभ भी था तो किस बात का 
नश्तर की जुबाँ न रोक सके 
मिटा न सके मन के मैल को 
और तन उजले वस्त्र धरे 
मैं बाहर आया मिलने को 
पर उनका "मैं" न बाहर आ सका मिलने को

तीन के तेरह करने को
राई को पहाड़ बनाने को
वो बाहर निकला तुरन्त झूठा स्वांग रचाने को 
दंभ में भीतर ही भीतर 
हमसे बड़ा कौन है 
सबको यह बताने को 
पर मिला न कोई खुद के मैं को जताने को 

मैं बाहर आया मिलने को वो 
पर वो बाहर न आ सके मिलने को।।।।।। #ekbarfir
बाहर निकल कर मैं आया 
वो गुरूर में खुद के न निकल सके 
मैं मन से मिला वो मन से न मिल सके 

दंभ भी था तो किस बात का 
नश्तर की जुबाँ न रोक सके 
मिटा न सके मन के मैल को 
और तन उजले वस्त्र धरे 
मैं बाहर आया मिलने को 
पर उनका "मैं" न बाहर आ सका मिलने को

तीन के तेरह करने को
राई को पहाड़ बनाने को
वो बाहर निकला तुरन्त झूठा स्वांग रचाने को 
दंभ में भीतर ही भीतर 
हमसे बड़ा कौन है 
सबको यह बताने को 
पर मिला न कोई खुद के मैं को जताने को 

मैं बाहर आया मिलने को वो 
पर वो बाहर न आ सके मिलने को।।।।।। #ekbarfir