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रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है, चाँद पागल

रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।

©"TIGER _THE FEARLESS TIGER" #Shayari#S.Anand Sajid kashmiri neelu PoetryWith@|{@|\||{$#@ sana naaz
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है,
चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है,
रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते हैं,
रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है।

©"TIGER _THE FEARLESS TIGER" #Shayari#S.Anand Sajid kashmiri neelu PoetryWith@|{@|\||{$#@ sana naaz
adilkhan7238

Adil Khan

Silver Star
Growing Creator
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