उम्र की झील तो भरती रही-क़तरा क़तरा हर एक सांस बिखरती रही- क़तरा क़तरा साल दर साल जनमदिन हम मनाते रहे ज़िन्दगी ख़र्च हो गई मगर-क़तरा क़तरा -अशरफ फ़ानी कबीर