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जब जब मैंने कलम उठाई, पायल की छन छन लिखने को। तब

जब जब मैंने कलम उठाई, 
पायल की छन छन लिखने को।
तब तब मेरे भाव पक्ष में,
केवल कृषक व्यथाएं आईं।
कलम हमारी लिख नहिं पाई, नथुनी का श्रृंगार।
सखी री कैसे लिख दूं प्यार।

जिस आंगन में भूख ठहरकर,    विपदाओं से लड़ी हमेशा।
उस आंगन के दुख लिखने को, कलम हमारी खड़ी हमेशा।
जब जब मैंने गाना चाहा,
गीत नायिका के सिहरन के।
तब तब मेरे कंठ कक्ष से,
आहत मन की चीखें निकलीं।
गला हमारा गा नहिं पाया, नज़रों की तकरार।
सखी री कैसे लिख दूं प्यार।
जब----------------------(१)

सहमी हुई उदासी लेकर, धनवानों के जो पग धोये।
उन हाथों की कंपनता को, हम गीतों में गाकर रोये।
जब जब मैंने पलक उठाई ,
उन्मादी कामुक नज़रों पर।
तब तब  मेरे  सुर्ख  दृगों में,
केवल बिंब श्रमिक के उभरे।
नेत्र हमारे पढ़ नहिं पाए , कामुकता का सार।
सखी री कैसे लिख दूं प्यार।
जब----------------------(२)
 
चिंता ग्रसित मेड़ पर बैठे   ,   माथों का अर्पण लिखने पर।
कलम हमारी रही विवादित, कुटियों का दर्पण लिखने पर।
जब जब मैंने गढ़ना चाहा,
यौवन अंगों की कोमलता।
तब तब मेरे चिंतन मन में,
केवल भूखों की छवि उभरी।
हाथ हमारे गढ़ नहिं पाये, यौवन का आकार।
सखी री कैसे लिख दूं प्यार।
जब------------------------(३)
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रचनाकार-
करन सिंह परिहार
ग्राम-पोस्ट- पिण्डारन
जिला- बांदा (उत्तर प्रदेश)
सम्पर्क- 9628463579

©करन सिंह परिहार
  #जब जब मैनें कलम उठाई

#जब जब मैनें कलम उठाई #कविता

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