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मैं किसान भूपुत्र निरक्षर, अक्षर ज्ञान कहाँ

मैं  किसान   भूपुत्र  निरक्षर,
अक्षर   ज्ञान  कहाँ  मुझको।
धर्म योग की  गणित कठिन,
है अंक सुजान कहाँ मुझको।
अनुभव   से   जीना   सीखा 
विज्ञ   हूँ   मैं,  अविज्ञ   नहीं ।
छला  गया   मैं   नीतिज्ञों  से
मौन  हूँ   मैं, अनभिज्ञ  नहीं।
          विज्ञ हूँ मैं, अविज्ञ नहीं ।

वायु-दिशा,  नभ, धरा  देख 
मौसम  का  पता  लगाता हूँ।
बीज लगा, सिंचित  कर भू,
निजकर्म मैं करता जाता हूँ।
ऋतु-पूजन कर सत्कर्मों से,
उपजाता हूँ  जीवन  अमृत।
यह धरा, प्रकृति है माँ मेरी।
मैं धरा-पुत्र, ऋतुविज्ञ नहीं।
          मौन हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं।
          विज्ञ  हूँ  मैं, अविज्ञ नहीं ।

जब करश्रृंगार भू-धूल का मैं,
स्वेद-सिक्त   हो  कर्म  किया।
तब  हो  प्रसन्न  धरती  माँ  ने
जीवनदायी  यह  अन्न   दिया।
मैं   कर्म-देव   का  साधक हूँ,
पर  धर्म  का  हूँ  मर्मज्ञ   नहीं।
मुझे  अर्थ  धर्म  का  ज्ञान नहीं
भू-सेवक    हूँ    धर्मज्ञ    नहीं।
          मौन हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं।
          विज्ञ  हूँ  मैं, अविज्ञ नहीं । भूपुत्र
मैं  किसान   भूपुत्र  निरक्षर,
अक्षर   ज्ञान  कहाँ  मुझको।
धर्म योग की  गणित कठिन,
है अंक सुजान कहाँ मुझको।
अनुभव   से   जीना   सीखा 
विज्ञ   हूँ   मैं,  अविज्ञ   नहीं ।
छला  गया   मैं   नीतिज्ञों  से
मौन  हूँ   मैं, अनभिज्ञ  नहीं।
          विज्ञ हूँ मैं, अविज्ञ नहीं ।

वायु-दिशा,  नभ, धरा  देख 
मौसम  का  पता  लगाता हूँ।
बीज लगा, सिंचित  कर भू,
निजकर्म मैं करता जाता हूँ।
ऋतु-पूजन कर सत्कर्मों से,
उपजाता हूँ  जीवन  अमृत।
यह धरा, प्रकृति है माँ मेरी।
मैं धरा-पुत्र, ऋतुविज्ञ नहीं।
          मौन हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं।
          विज्ञ  हूँ  मैं, अविज्ञ नहीं ।

जब करश्रृंगार भू-धूल का मैं,
स्वेद-सिक्त   हो  कर्म  किया।
तब  हो  प्रसन्न  धरती  माँ  ने
जीवनदायी  यह  अन्न   दिया।
मैं   कर्म-देव   का  साधक हूँ,
पर  धर्म  का  हूँ  मर्मज्ञ   नहीं।
मुझे  अर्थ  धर्म  का  ज्ञान नहीं
भू-सेवक    हूँ    धर्मज्ञ    नहीं।
          मौन हूँ मैं, अनभिज्ञ नहीं।
          विज्ञ  हूँ  मैं, अविज्ञ नहीं । भूपुत्र

भूपुत्र