poetry Ankit sharma इनायतों के टुकड़ों में वो कब करतें हैं इजाफा हैं दर्द मंसूब है हमसे तो रहने दो पीये पडा हूँ दो घूँट जब्त कंमबख्त रंज में अब कहती है मयपरस्त दुनिया तो कहने दो कश्तियाँ कर रहीं हैं अंकित मुसाफ़िरों की तरफदारी दरियाओं को उनके मुताबिक बहने दो #Gazals#shayri