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इक रूमाल में बँधी हुयी, दो सूखी रोटी झाँक रही। दाँ

इक रूमाल में बँधी हुयी,
दो सूखी रोटी झाँक रही।
दाँत नदारत थे मुँह से,
खायें कैसे ये ताक रही।
गन्दी संदी सी बोतल से,
पानी उसपे था छिड़क लिया, 
फिर भी न पसीजी रोटी तो,
पानी थोड़ा सा कड़क किया।
रोटियों को जब शरम हुयी,
तब जा के थोड़ा नरम हुयी।
कुछ ध्यान से शायद देख रही ....
बूढ़ी अम्मा........ #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
इक रूमाल में बँधी हुयी,
दो सूखी रोटी झाँक रही।
दाँत नदारत थे मुँह से,
खायें कैसे ये ताक रही।
गन्दी संदी सी बोतल से,
पानी उसपे था छिड़क लिया, 
फिर भी न पसीजी रोटी तो,
पानी थोड़ा सा कड़क किया।
रोटियों को जब शरम हुयी,
तब जा के थोड़ा नरम हुयी।
कुछ ध्यान से शायद देख रही ....
बूढ़ी अम्मा........ #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....