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जब कोई फ्री में मौज उङाए शक तो उस पर बनता हैं ।

जब कोई फ्री में मौज उङाए 
 शक तो उस पर बनता हैं ।
प्रकृति किसी की नहीं बपौती ,
अपना हक भी बनता है ।
असमय कोई दृश्य डरावना 
हृदय मे धक-धक बनता है ।
खाली बैठे, काम ना कोई,
कुछ तो बक-बक बनता है।
आस पङौस में काम चल रहा
खट खट,पट-पट चलता हैं।
बैर आग है,क्रोध दूध सा,
आग पर दूध उफनता है ।
 टांग खिचाई ठीक नहीं भाई,
इससे झगङा बनता है ।।

©Pushpendra Pankaj
  आग पर दूध उफनता है

आग पर दूध उफनता है #कविता

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