ऐसी मारी उसने पिचकारी मैं अपना दिल गई हारी ! दईया रे दईया रंग डारी मैं पूरी ही रंग डारी ! मैं तो जोगन बन बैठी हूँ सब सुध बुध अपनी हारी ! प्यारी सी चितवन श्याम जू मैं हो गई हूँ बलिहारी ! तन पर रंग लगाया तुमने मन मेरा रंगीन किया आँखों को मेरी इक उम्दा उड़ता उड़ता ख़्वाब दिया ! : आज धूल माटी से खेली खेली कीच ग़ुलाल से कल लेकर के यारा आना तुम रंग क़माल के । :