बारिश यूं तो आज भी बहुत अच्छी लगती है मगर बचपन में बारिश का मज़ा कुछ अलग ही था। उस वक़्त बारिश और हमारा रिश्ता कुछ "टॉम एंड जेरी" जैसा था। सावन में हम बस एक दुआ करते थे "हे भगवान! बूंदे झमाझम तब बरसाना जब सुबह स्कूल जाने का समय हो" मगर भगवान ने भी ठाना था के हमारी नहीं सुननी। सुबह जब स्कूल जाने का समय होता था तब बादल बस गरजते थे। तो हारकर हमें स्कूल जाना पड़ता था। यूं तो कहावत है कि "गरजने वाले बादल बरसते नहीं" मगर ये हमारे शहर के बादल थे जनाब, हम जैसे ही अत्रंगे। ये गरजते थे और बरसते भी। जैसे ही घड़ी की सुइयां २ बजाती, बूंदों की बौछारों की लड़ियां लग जाती... मानो मेरा स्वागत कर रही हो और कह रही हो.. "आजा मेरे बच्चा, आखिर एक और दिन तूने खुशी से बिताया।" फिर क्या? मै तो बच्ची थी ही। खुशी से पागल होकर उन बूंदों की बाहों में झूल जाती थी। और साथ में कुछ पागल दोस्त थे जिनके संग फिर बारिश में खूब नाचती थी। #बचपन और #बारिश