न दख़ल हो,न खलल हो, जिंदगी बस ऐसे ही गुजर हो। शांति की कुटिया रहे, और सुकून से भरा आंगन हो। न भूत का पता रहे, न भविष्य की चिंता खाये। बस आनंद हो चारो ओर, और सामंजस्य व समन्वय हो। निर्विकार निर्लिप्त निर्मल मन हो, मोती सा धवल अंतरतम हो। हिमालय सा विशाल हृदय, और दीपक सा उजला कर्म हो। न परिस्थितियों का जोर हो, न किसी दबाव की डोर हो। चलते जाओ अनवरत, सफल तुम्हारा हर एक पल हो। बसर