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न दख़ल हो,न खलल हो, जिंदगी बस ऐसे ही गुजर हो। शांति

न दख़ल हो,न खलल हो,
जिंदगी बस ऐसे ही गुजर हो।
शांति की कुटिया रहे,
और सुकून से भरा आंगन हो।

न भूत का पता रहे,
न भविष्य की चिंता खाये।
बस आनंद हो चारो ओर,
और सामंजस्य व समन्वय हो।

निर्विकार निर्लिप्त निर्मल मन हो,
मोती सा धवल अंतरतम हो।
हिमालय सा विशाल हृदय,
और दीपक सा उजला कर्म हो।

न परिस्थितियों का जोर हो,
न किसी दबाव की डोर हो।
चलते जाओ अनवरत,
सफल तुम्हारा हर एक पल हो। बसर
न दख़ल हो,न खलल हो,
जिंदगी बस ऐसे ही गुजर हो।
शांति की कुटिया रहे,
और सुकून से भरा आंगन हो।

न भूत का पता रहे,
न भविष्य की चिंता खाये।
बस आनंद हो चारो ओर,
और सामंजस्य व समन्वय हो।

निर्विकार निर्लिप्त निर्मल मन हो,
मोती सा धवल अंतरतम हो।
हिमालय सा विशाल हृदय,
और दीपक सा उजला कर्म हो।

न परिस्थितियों का जोर हो,
न किसी दबाव की डोर हो।
चलते जाओ अनवरत,
सफल तुम्हारा हर एक पल हो। बसर