जुगनू बन कर रात ग़ज़ल की और नूर से बातें की काजल की छोटी डिब्बी में ख़ुद से भी मुलाकातें की गुड़पट्टी को मुँह में रख कर, नीम ज़ुबाँ पर चढ़ने दी मुस्कानों के दाम चुका कर सच की चुंगी बढ़ने दी जब सब रिश्ते दरक रहे थे, बेबाक़ सभी बारातें की जुगनू बन कर रात ग़ज़ल की और नूर से बातें की गुदवा कर पीठ पे नाम तेरा, क़ासिद को बुलवाया था कितना सच्चा, कितना झूठा, सब उस से तुलवाया था बेरंग लौट कर तेरे पते से, फ़ानी सब औक़ातें की जुगनू बन कर रात ग़ज़ल की और नूर से बातें की शबनम सच्चा मोती बन कर, सीने में अक्सर जलती थी आँख लगे तो नदी चाँद सी, पैर ख़्वाब के चलती थी मोले लगाए कोई मेरा तो, ना जाने कितनी हाटे की जुगनू बन कर रात ग़ज़ल की और नूर से बातें की मैं मगही का पान पिघल कर दीवारों पर जर्द हुआ रात तापा, दिन रात तापा, औऱ कफ़न सा सर्द हुआ काट सकूँ मैं खुद को तुझसे, खुद पर कितनी घातें की जुगनू बन कर रात ग़ज़ल की और नूर से बातें की ~ जुगनू बन कर @ अब ख़ामोशी को कहने दो ©Mo k sh K an #ab_khamoshi_ko_kehne_do #mokshkan #mikyupikyu #Love #lost #pathos