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खाक में ढूंढने चला खाक बन कर नींद में था जगा वह र

खाक में ढूंढने चला खाक बन कर 
नींद में था जगा वह राख बनकर
धुआं धुआं सब था आसमान में
ढूंद हुआ था सहर दाग बनकर 
पुराना मका था और पुरानी यादें
बिखरा बिखरा ख्वाब था संग बनकर 
फलसफा फैसले का था बेबाक्त 
राज चांद टूटा मेरे आंगन राख बनकर

©Rishi Raj
  #netaji
rishiraj4767

Rishi Raj

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#netaji #Poetry

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