बचपन से है सीखा हमने ज़िद को छोड़ो और सबर करो हर एक विकट स्थिति में न आपा खोओ बस धीर धरो यह वक्त का पहिया हैं देखो चलता रहता टिकता ही नही तुम अच्छे कर्म रहो करते मत सोचो क्या है बुरा क्या सही यह बात सुना करता ही गया हर विपदा से लड़ता मैं गया फिर भी न सुलभ हुआ जीवन इसके पाटों में पिसता ही गया वो दिन भी देखें हैं मैंने जब एक वक्त की भी ना रोटी थी फैला के हाथ भी देखें थे पर क़िस्मत अपनी तो खोटी थी था सब्र कि अगले पल शायद कही से तो कोई हाथ मिले जिन हाथों में हो अन्न ज़रा, छुधा गर्भ की जिससे शांत रहें हर किसी ने केवल देखा और फिर मुंह अपना मुझसे मोड़ लिया कोई हसा मेरे हालातों पर पर ना किसी ने मुझको ठौर दिया उस वक्त से गुजरा हुआ हूं मैं जिसमें लोग गुजर जाते हैं यहां अच्छा करने वालों के संग अच्छा हो हुआ मैंने न सुना ©Ankur tiwari #WoNazar बचपन से है सीखा हमने ज़िद को छोड़ो और सबर करो हर एक विकट स्थिति में न आपा खोओ बस धीर धरो यह वक्त का पहिया हैं देखो चलता रहता टिकता ही नही तुम अच्छे कर्म रहो करते