मैं इक सुबह का निकला हुआ सूरज हूँ,, तू कहे तो तेरी खातिर बदलो मे छुप जाऊँ क्या,, तेरी खुशी कि खातिर मैं फिर से शाम हो जाऊँ क्या,, दिन कि शुरुआत होती है और होती रहेगी,, तेरी खातिर सुबह मे ही शाम कि तरह छुप जाऊँ क्या,, अंसारी,, मैं शाम कि तरह छुप जाऊँ क्या,,